ले चलो अपनी पलकों कि सरहद के उस पार,
इस झील में हाथ पकड़ के उतारो मुझे..
बसाकर आँखों में अपनी रोशन कर दो मेरी दुनिया
जिन्दगी के इन घने अंधेरो से उबारो मुझे ..
या तो जिन्दगी बख्श दो मेरे हर जज्बात को,
या आरजू न बाकी रहे इस मौत मारो मुझे..
हर लम्हा सताते हैं ये आगाज अजनबी से,
है तमन्ना, एक बार तो नाम लेकर पुकारो मुझे .
खिलौना बना लो या कोई मुक्कमल मूरत बना लो ,
मैं गर्द* ए एहसास हूँ अपने सांचे में संवारो मुझे
बेमुकाम से सफ़र में चलता ही जा रहा हूँ मैं
तुम साथ दो तो मिल जाएँ मंजिले हजारो मुझे
गर्द*= मिट्टी
vandana singh
1-8- 2010
bahut khub....
ReplyDeletehar ek pankti lajawab padi hai....
Bahut hi khoobsurat likha hai Vandu. :)
ReplyDeleteखूबसूरत गज़ल ..
ReplyDeletebeautiful imagination and thoughts...lovely as always :)
ReplyDeleteहर लम्हा सताते हैं ये आगाज अजनबी से,
ReplyDeleteहै तमन्ना, एक बार तो नाम लेकर पुकारो मुझे .
खिलौना बना लो या कोई मुक्कमल मूरत बना लो ,
मैं गर्द* ए एहसास हूँ अपने सांचे में संवारो मुझे
tareef karoon kya.....bologi jhootih hai...ab jab itna achcha likhogi to karni to padegi hi
@ all.........bahut bahut shukriyaa aap sabhi ka aane or sarahne k liye :) thanku soo much :)
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