Monday, August 2, 2010

Ghazal




ले चलो अपनी पलकों कि सरहद के उस पार,
इस झील में हाथ पकड़ के उतारो मुझे..

बसाकर आँखों में अपनी रोशन कर दो मेरी दुनिया
जिन्दगी के इन घने अंधेरो से उबारो मुझे ..

या तो जिन्दगी बख्श दो मेरे हर जज्बात को,
या आरजू न बाकी रहे इस मौत मारो मुझे..

हर लम्हा सताते हैं ये आगाज अजनबी से,
है तमन्ना, एक बार तो नाम लेकर पुकारो मुझे .

खिलौना बना लो या कोई मुक्कमल मूरत बना लो ,
मैं गर्द* ए एहसास हूँ अपने सांचे में संवारो मुझे

बेमुकाम से सफ़र में चलता ही जा रहा हूँ मैं
तुम साथ दो तो मिल जाएँ मंजिले हजारो मुझे

गर्द*= मिट्टी

vandana singh
1-8- 2010

6 comments:

  1. bahut khub....
    har ek pankti lajawab padi hai....

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  2. Bahut hi khoobsurat likha hai Vandu. :)

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  3. beautiful imagination and thoughts...lovely as always :)

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  4. हर लम्हा सताते हैं ये आगाज अजनबी से,
    है तमन्ना, एक बार तो नाम लेकर पुकारो मुझे .

    खिलौना बना लो या कोई मुक्कमल मूरत बना लो ,
    मैं गर्द* ए एहसास हूँ अपने सांचे में संवारो मुझे

    tareef karoon kya.....bologi jhootih hai...ab jab itna achcha likhogi to karni to padegi hi

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  5. @ all.........bahut bahut shukriyaa aap sabhi ka aane or sarahne k liye :) thanku soo much :)

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...