गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Friday, July 30, 2010
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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जितना खुद में सिमटते गए उतना ही हम घटते गए खुद को ना पहचान सके तो इन आईनों में बँटते गये सीमित पाठ पढ़े जीवन के उनको ही बस रटत...
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वफायें ..जफ़ाएं तय होती है इश्क में सजाएं तय होती हैं पाना खोना हैं जीवन के पहलू खुदा की रजाएं.. तय होती हैं ये माना... के गुन...
एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
ReplyDeletesanjay ji ..bahut bahut shukriyaa aapka yahan tak aane k liye or sarahne k liye ......
ReplyDeletethanks again :)
माँ की आँखें जैसे भविष्य की आईना हों !
ReplyDeleteमां की आँखें बिना बोले कितना कह जाती है ना ..!
ReplyDeletewow...kya dhaanso tyoe triveni likhi hai superb yaar
ReplyDeletebahut shandaar!
ReplyDeleteवाह.. त्रिवेणी ने वाकई धार दी है..
ReplyDeletewah wah....gagar me sagar...
ReplyDeleteWaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaah
ReplyDeleteWaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaah
ReplyDelete@ all ....bahut bahut bahut shukriya aap sabhi ka yahan tak aane or sarahne ke liye :)
ReplyDeleteneer ...liked ur itni lambi wah hehe thnks :)
ReplyDeletetriveni ..........kyun bani hai ?........ganga ,jamuna aaur sarswati tino ka ek aadhura sangam ke bichhade khali pan ko ki talasha ka gahara prayas
ReplyDeleteकितना कुछ कह गयीं यह पंक्तियाँ..!!!
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