जिन्दगी के इल्म पर एतबार नहीं होता
मगर आईने में देखकर इनकार नहीं होता
हर एक जख्म को मरहम कि तलाश होती है
किसी को कभी किसी से प्यार नहीं होता..
दिल कि तन्हाई बज्म ए एहसास तलाशती है
यहाँ कोई किसी का तलबगार नहीं होता..
डूब भी जाया करते हैं अक्सर लहरों से खेलने वाले
मगर साहिल पे बैठ कर तो दरिया पार नहीं होता..
आईने कि क्या मजाल मुझे कोई इल्जाम दे
अपनी ही नजर में अगर मैं गुनहगार नहीं होता..
डूब भी जाया करते हैं अक्सर लहरों से खेलने वाले
ReplyDeleteमगर साहिल पे बैठ कर तो दरिया पार नहीं होता..
बेहतरीन।
जिनके बँगलों में रहें, सुन्दर-सुन्दर श्वान।
ReplyDeleteउनको कैसे भायेंगे, निर्धन,श्रमिक,किसान।।
यथार्थ चित्रण।
Na jane kyon laga ki pahle bhi padha hai...Lekin fir refresh ho gai....May be tumne FB par dala ho
ReplyDeleteआईने कि क्या मजाल मुझे कोई इल्जाम दे
ReplyDeleteअपनी ही नजर में अगर मैं गुनहगार नहीं होता..
:) good one
बेहद शानदार गज़ल्………………हर शेर दिल को छूने वाला।
ReplyDeleteजिन्दगी के इल्म पर एतबार नहीं होता
ReplyDeleteमगर आईने में देखकर इनकार नहीं होता
हर एक जख्म को मरहम कि तलाश होती है
किसी को कभी किसी से प्यार नहीं होता..
खूबसूरत पन्तियाँ....काफी दिनों के बाद आपके ब्लॉग पर आया ..एक अच्छी रचना से सुकून मिला मन को.
good one...
ReplyDeleteहर एक जख्म को मरहम कि तलाश होती है
ReplyDeleteकिसी को कभी किसी से प्यार नहीं होता..
बहुत खूब .. ग़ज़ब का शेर है ये ... लाजवाब है पूरी ग़ज़ल ...
ऐतबार तो इन साँसों का भी नहीं है,
ReplyDeleteअपनी हो कर भी पराई सी जान पड़ीं,
आज आ रही हैं तो जी लेते हैं,
कल आने कि फुर्सत मिले इन्हें, क्या पता?
interesting blog space.
Cheers
Blasphemous Aesthete
bahut bahut shukriyaa aap sabhi ka yaahan tak aane k liye ....:)
ReplyDelete