गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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जितना खुद में सिमटते गए उतना ही हम घटते गए खुद को ना पहचान सके तो इन आईनों में बँटते गये सीमित पाठ पढ़े जीवन के उनको ही बस रटत...
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वफायें ..जफ़ाएं तय होती है इश्क में सजाएं तय होती हैं पाना खोना हैं जीवन के पहलू खुदा की रजाएं.. तय होती हैं ये माना... के गुन...
चिंतन करने वाले भाव ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसचमुच
ReplyDeleteखतरनाक होते हैं
मौन होते रिश्ते...
सार्थक चिंतन... गंभीर रचना...
सादर...
खतरनाक होते है मैन होते रिश्ते..गहन चिन्तन सार्थक रचना...
ReplyDeleteफिलहाल तो शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ और सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन जी को नमन!
ReplyDeleteसार्थक चिन्तन्।
ReplyDeletesach kaha aapne khatarnak hote hai bahut.....maun hote hue rishte. yahi maun hi shuruaat hai rishto me zeher ki.
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