Tuesday, August 30, 2011

"जिन्दगी"




एक नज्म
 रह गयी है मेरी 
तुम्हारे पास  
 गलती से ..

जिसका नाम अनजाने में 
"जिन्दगी" 
रख दिया था मैंने 

मायने मालूम नहीं थे  ना  
इसलिए छूट गयी 
शायद तुम्हारे पास !

मायने समझ आएँ हैं तो 
अक्ल भी आ गयी है 
अब नहीं दोहराउंगी 
जीवन कि उन तहरीरों को 

और अगर लिखूंगी भी 
तो किसी को सौंपने कि 
भूल तो हरगिज़ नहीं करूंगी 


क्योकि गलतियां 
दोहराने पर जिन्दगी 
पछताने का  भी मौका नहीं देती 


- वंदना 


6 comments:

  1. नज़्म ..और ज़िंदगी ..खूबसूरत बिम्ब ..अच्छी मन को छू लेने वाली रचना

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  2. बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  3. सुन्दर नज़्म....
    सादर...

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  4. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 01-09 - 2011 को यहाँ भी है

    ...नयी पुरानी हलचल में आज ... दो पग तेरे , दो पग मेरे

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  5. बहुत सुन्दर नज्म ...सादर!!!

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...