एक नज्म
रह गयी है मेरी
रह गयी है मेरी
तुम्हारे पास
गलती से ..
गलती से ..
जिसका नाम अनजाने में
"जिन्दगी"
रख दिया था मैंने
रख दिया था मैंने
मायने मालूम नहीं थे ना
इसलिए छूट गयी
शायद तुम्हारे पास !
शायद तुम्हारे पास !
मायने समझ आएँ हैं तो
अक्ल भी आ गयी है
अब नहीं दोहराउंगी
जीवन कि उन तहरीरों को
और अगर लिखूंगी भी
तो किसी को सौंपने कि
भूल तो हरगिज़ नहीं करूंगी
क्योकि गलतियां
दोहराने पर जिन्दगी
पछताने का भी मौका नहीं देती
- वंदना
नज़्म ..और ज़िंदगी ..खूबसूरत बिम्ब ..अच्छी मन को छू लेने वाली रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...
ReplyDeletebahut bahut bahut hi achhi rachna ...
ReplyDeleteसुन्दर नज़्म....
ReplyDeleteसादर...
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 01-09 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में आज ... दो पग तेरे , दो पग मेरे
बहुत सुन्दर नज्म ...सादर!!!
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