बूँद बूँद में घुलकर हम भी बहता पानी हो जाएँ..
जिन्दगी को लिखते लिखते एक कहानी हो जाएँ !
अल्फाज़ दिये मैंने अपनी धड़कन कि तहरीरों को..
तुम लबो से छू लो तो ये ग़ज़ल सुहानी हो जाएँ !
मेरी आँखों के दर्पण में खुद को सवाँरा कीजिये..
इन शर्मीली सी आँखों का हम भी पानी हो जाएँ !
मुझको साँसे बख्श दो मैं धड़कन तेरी हो जाऊं..
तुम जो ये सौदा करलो जीने कि असानी हो जाएँ !
तुम राधा कि दीवानगी मैं हूँ मुरली कि तान..
अपनाकर इस प्रीत को हम रीत पुरानी हो जाएँ !!
अपनाकर इस प्रीत को हम रीत पुरानी हो जाएँ !!
वंदना
बहुत सुन्दर आशआर पेश किये हैं आपने इस नज्म में।
ReplyDeleteतुम जो ये सौदा कर लो, जीने की आसानी हो जाए....
ReplyDeleteव्वाह! बहुत ही उम्दा ग़ज़ल...
सादर..
vaah kya baat hai....Bahut sundar gazal.aabhar.
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गज़ल्।
ReplyDeleteJi bilkul apna liya....ise nakshe kadam par chal rahe hain :-)
ReplyDeleteBAHUT KHOOB VANDNA JI...WAAH
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्यारी सी गज़ल...
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