एक आवारा परिंदे कि उड़ान होता गया ,
दिल को हवा लगी आसमान होता गया..
कितने मंजर छूट गए उस बेख्याली में,
मैं खुद से भी कैसा अनजान होता गया..
ख़्वाब न हकीकत वो कुछ भी तो न था ,
महज़ इक भरम का गुमान होता गया..
सुधियों को सिखाकर एक गूंगी परिभाषा ,
इक तस्सवुर दिल का महमान होता गया..
वरक दर वरक* दुआएं बहुत सी पढीं,
हर इबादत पे दिल ये बेईमान होता गया..
जब्त कि रगों में इज़्तराब* ठहर गया ,
इश्क एक पागल कि मुस्कान होता गया..
रफाकत का हमने भी दामन नही छोड़ा ,
खुदगर्ज कोई मुझमे पशेमान* होता गया..
प्यासे समंदर कि सब मछलियां बींद डाली,
जाता हुआ मौसम तीर ए कमान होता गया !!
- वंदना
वरक दर वरक = पन्ने दर पन्ने
इज़्तराब = बेचैनी / तड़प
पशेमान = शर्मिंदा
भावभीनी गजल को बधाई सम्मान ,,,, अच्छा लगा /
ReplyDeleteखुबसूरत रचना....
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत गज़ल ..उड़ान कायम रहे .
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 29 -09 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में ...उगते सूरज ..उगते ख़्वाबों से दोस्ती
सुन्दर ग़ज़ल.
ReplyDeleteहर शेर बढ़िया.
नई पुरानी हलचल से इस पोस्ट पर आना हुआ.
ReplyDeleteआपकी खूबसूरत प्रस्तुति दिल को छूती है.
नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ekdam lazabab......
ReplyDeleteekdam lazabab......
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत गजल।
ReplyDeleteसादर