हो सकता है मेरा अनुभव गलत हो
या नजरिया अस्थिर हो क्योकि
मेरी सोच में गांठे पड़ने लगी हैं आजकल ..
जिन्हें सुलझाने कि जद्दोजहद में
मैं अक्सर उलझ जाती हूँ ....
सुना है कुछ चीजों कि मिठास
वक्त के साथ बढ़ जाती है
और कुछ चीजों कि कम होती जाती है !
कई बार हम इसे प्रकृति का
नियम कहकर खुद को बहला लेते हैं
लेकिन कुछ नियम प्रक्रति ने नहीं
हमारे स्वार्थ ने बनाये हैं अपने बचाव में
जिन्दगी के काफिले में लोग
कभी मिलते हैं कभी बिछड़ते हैं
कभी सीख बनकर कभी सहारा बनकर
कभी खुशी बनकर कभी गम का किनारा बनकर
कभी सबक बनकर कभी मिठास बनकर
कुछ लोग झोंके कि तरह गुजर जाते हैं
मगर कुछ धूप और चांदनी कि तरह ठहर जाते हैं
जो जिन्दगी कि आदतें भी हैं और जरूरत भी !
मेरे लिए हर वो रिश्ता
जो मेरी जिन्दगी कि कमाई है ..
जिनकी खुशी मेरी मुस्कानों में सजती है
जिनके गम मेरी दुआओं में बसते हैं
जिनके साथ मैंने मुस्कुराहट ,
अपनी उदासियाँ बाटी हैं
मैं चाहती हूँ वो जिन्दगी में
धूप , चांदनी और इस आती जाती
हवा कि तरह हमेशा साथ रहें ..
मैं चाहती हूँ वो जिन्दगी में
धूप , चांदनी और इस आती जाती
हवा कि तरह हमेशा साथ रहें ..
जिनकी मिठास वक्त के साथ कभी कम न हो
मगर डर लगता है कभी कभी
जब जिन्दगी का कोई पल
अकेले होकर मिलता है मुझसे
तो मैं फैंसला नहीं कर पाती
जिन्दगी का कैनवास कितना
रंगीन है और कितना फीका !
" बुरा भी कभी कुछ कहा तो नही है
मैल इस दिल में कोई रहा तो नही है
फिर भी ..माफ़ी उस हर बात के लिए
जिससे जाने अनजाने दिल दुखा हो किसी का !!
-- वंदना
-- वंदना
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
बहुत ही बढि़या ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव संजोये हैं।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव से ओत-प्रोत बढि़या अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteसुन्दर आत्मकथ्य .
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर....
ReplyDeleteकुछ नियम प्रकृति ने नहीं
ReplyDeleteहमारे स्वार्थ ने बनाए हैं....
सुन्दर प्रस्तुति....
सादर...