Friday, December 7, 2012

त्रिवेणी




सुनकर चौंक से गये हैं कान 
रस हवाओ में घोल रहा है.. 

जाने किस दर्द में परिंदा बोल रहा है !

7 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (09-12-2012) के चर्चा मंच-१०८८ (आइए कुछ बातें करें!) पर भी होगी!
    सूचनार्थ...!

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  2. भावो को संजोये रचना......

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  3. वाह||
    बहुत-बहुत सुन्दर...
    :-)

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  4. बहुत बढ़िया.....
    अनु

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  5. सुंदर भावपूर्ण चित्रमयी प्रस्तुति.

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  6. बेबस मन का सटीक चित्रण ..
    बहुत खूब!

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...