गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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खुद को छोड़ आए कहाँ, कहाँ तलाश करते हैं, रह रह के हम अपना ही पता याद करते हैं| खामोश सदाओं में घिरी है परछाई अपनी भीड़ में फैली...
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बरसों के बाद यूं देखकर मुझे तुमको हैरानी तो बहुत होगी एक लम्हा ठहरकर तुम सोचने लगोगे ... जवाब में कुछ लिखते हुए...
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वफायें ..जफ़ाएं तय होती है इश्क में सजाएं तय होती हैं पाना खोना हैं जीवन के पहलू खुदा की रजाएं.. तय होती हैं ये माना... के गुन...

सबकी एक सी गति
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteबेहतरीन भाव ...
ReplyDeleteगंभीर घाव करती पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहुत खूब ... लाजवाब ...
ReplyDeleteबहुत श्रेष्ठ और सटीक!
ReplyDeletebaat gahri to hai ...
Deleteसही कहा आपने ..जिंदगी हर पल रंग बदलती है ..
ReplyDeleteजिंदगी की खुशियाँ
दामन में नहीं सिमटती
ऐ मौत ! आ
मुझे गले लगा ले ...
जितना भी सुल्झाते हैं इसे
ReplyDeleteऔर उलझती है ज़िन्दगी !
बहुत सुंदर वंदना जी