गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...

-
बंद दरिचो से गुजरकर वो हवा नहीं आती उन गलियों से अब कोई सदा नहीं आती .. बादलो से अपनी बहुत बनती है, शायद इसी जलन...
-
वफायें ..जफ़ाएं तय होती है इश्क में सजाएं तय होती हैं पाना खोना हैं जीवन के पहलू खुदा की रजाएं.. तय होती हैं ये माना... के गुन...
-
इन सिसकियों को कभी आवाज मत देना दिल के दर्द को तुम परवाज मत देना यहाँ अंदाज ए नजर न तुझे तेरी ही नजर में गाड़ दे भूलकर भी किसी को ...
सबकी एक सी गति
ReplyDeletesundar
ReplyDeleteबेहतरीन भाव ...
ReplyDeleteगंभीर घाव करती पंक्तियाँ
ReplyDeleteबहुत खूब ... लाजवाब ...
ReplyDeleteबहुत श्रेष्ठ और सटीक!
ReplyDeletebaat gahri to hai ...
Deleteसही कहा आपने ..जिंदगी हर पल रंग बदलती है ..
ReplyDeleteजिंदगी की खुशियाँ
दामन में नहीं सिमटती
ऐ मौत ! आ
मुझे गले लगा ले ...
जितना भी सुल्झाते हैं इसे
ReplyDeleteऔर उलझती है ज़िन्दगी !
बहुत सुंदर वंदना जी