ये कैसी नींद थी
कि ये कैसा ख़्वाब था
क्या था ..कौन था
एक साया था ..
या भरम था ?
एक सबा का झौका
या कोई तूफ़ान था ?
बुझते चिरागों का
धुंआ महसूस होता है
क्या कोई रौशनी थी यहाँ
या यही फैला हुआ अँधेरा था ?
रंग फीके हो गए
या तस्वीरे धुंधला गयीं
चेहरे खो गए या
आईने बदल गए है ?
ये कैसा ठहराव है ?
ये कैसा सन्नाटा है ?
कोई सफर पर निकला तो है
मगर कुछ भूल आया है ?
क्या कोई चुरा ले गया
जीने का सब जरूरी सामान
सपने , तमन्ना ,आरजू
धडकन ,..साँसे ...
शायद जीने के बहाने भी !
या फिर अंतर्मन के इस
विषैले सागर में किसी ने
डूबकर खुदखुशी कि है ?
- वंदना
तैरता उतराता शांत लम्हा
ReplyDeleteख़ुदकुशी की शक्ल अपनी सी लगती है ....
या फिर अंतर्मन के इस
ReplyDeleteविषैले सागर में किसी ने
डूबकर खुदखुशी कि है ?
अन्तर्मन की व्यथा ...
ये खुदकशी भी तो अपने आप नहीं आती ... उठाना होता है ... कर्म करना होता है ...
ReplyDeleteशुक्रवार के मंच पर, तव प्रस्तुति उत्कृष्ट ।
ReplyDeleteसादर आमंत्रित करूँ, तनिक डालिए दृष्ट ।।
charchamanch.blogspot.com
Oh ,sahaj aur khoobsoorat abhivyakti...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव| धन्यवाद।
ReplyDeleteखूबसूरत भावपूर्ण रचना, बधाई
ReplyDeletebahut achchi abhvyakti.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteWaaaaah....bahut hi dhansu....zor se padhne me aur bhi maza aaya.
ReplyDeletekya khoob likha hai vandana ji...prabhawit karti hai aapki lekhani..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteघूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
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आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!
क्या बात है, पीड़ा का अतिरेक.
ReplyDeleteसुन्दर रचना , बधाई ,
ReplyDeleteसादर
man me bhaavnaon ka toofan umadta hai to kalam chalti hai ....man me umadte bhaavon ko achcha roop diya hai rachna ne.
ReplyDeleteAwesome!!
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