Wednesday, February 22, 2012

ख़ुदखुशी !!!



ये कैसी नींद थी 
कि ये कैसा ख़्वाब था 

क्या था ..कौन था 
एक साया था ..
या भरम था  ? 

एक सबा का झौका 
या कोई तूफ़ान था ?

बुझते चिरागों का 
धुंआ महसूस होता है 
क्या कोई रौशनी थी यहाँ 
या यही फैला हुआ अँधेरा था ?


रंग फीके हो गए 
या तस्वीरे धुंधला गयीं 
चेहरे खो गए या 
आईने बदल गए है ?




ये कैसा ठहराव है ?
ये कैसा सन्नाटा है ?



कोई  सफर पर निकला तो है 
मगर  कुछ भूल आया है ?


क्या कोई चुरा ले गया 
जीने का सब जरूरी सामान 
सपने , तमन्ना ,आरजू 
धडकन ,..साँसे ...
शायद जीने के बहाने भी !


 या फिर अंतर्मन के इस 
विषैले  सागर में किसी ने 
डूबकर खुदखुशी कि  है ?


- वंदना 

16 comments:

  1. तैरता उतराता शांत लम्हा
    ख़ुदकुशी की शक्ल अपनी सी लगती है ....

    ReplyDelete
  2. या फिर अंतर्मन के इस
    विषैले सागर में किसी ने
    डूबकर खुदखुशी कि है ?

    अन्तर्मन की व्यथा ...

    ReplyDelete
  3. ये खुदकशी भी तो अपने आप नहीं आती ... उठाना होता है ... कर्म करना होता है ...

    ReplyDelete
  4. शुक्रवार के मंच पर, तव प्रस्तुति उत्कृष्ट ।

    सादर आमंत्रित करूँ, तनिक डालिए दृष्ट ।।

    charchamanch.blogspot.com

    ReplyDelete
  5. बहुत ही सुन्दर भाव| धन्यवाद।

    ReplyDelete
  6. खूबसूरत भावपूर्ण रचना, बधाई

    ReplyDelete
  7. बहुत सुंदर भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
  8. Waaaaah....bahut hi dhansu....zor se padhne me aur bhi maza aaya.

    ReplyDelete
  9. kya khoob likha hai vandana ji...prabhawit karti hai aapki lekhani..

    ReplyDelete
  10. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच
    लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
    --
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर लगाई गई है!

    ReplyDelete
  11. क्या बात है, पीड़ा का अतिरेक.

    ReplyDelete
  12. सुन्दर रचना , बधाई ,
    सादर

    ReplyDelete
  13. man me bhaavnaon ka toofan umadta hai to kalam chalti hai ....man me umadte bhaavon ko achcha roop diya hai rachna ne.

    ReplyDelete

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...