Friday, January 27, 2012

साहिल पर आँखें :)





कितनी खूबसूरत शाम है 
और मैं 
साहिल कि रेत में 
तुम्हारी आँखें बना रही हूँ ..


पता है क्यूं ?
क्यूंकि .. लहरों कि चुनोतियाँ 
स्वीकारी  हैं मैंने ...


 उन्हें  डूबने के अर्थ समझाने हैं 


 कि कितनी ख़ामोशी से
डुबो सकती हैं आँखें
बिना  किसी  आवेश के


एक मौन सी चंचलता के  पीछे
हम उतरने लगते हैं
एक खामोश झील में
बेसुध ,बेफिक्र 
किसी बच्चे कि तरह 
जिसे न गहराई का 
तकाज़ा है ...न डूबने का डर !


ना ना ...इनमे उतरने के 
चलकर जाने कि जरुरत नही 
न लहरों का बवंडर कोई 
जो खींच  ले जाये ...  


बस काफी होता है 
उन पलकों कि कोर पर 
नजर का एक छण
 ठहर जाना ..

देखो.... हारती हुई 

लहरों का गवाह है
ये डूबता हुआ  सूरज 








समंदर हार गया 
आँखें जीत गयीं 


मैं डूब रही हूँ ..


अपनी बांहों का 
सहारा तो दो !!








- वंदना































4 comments:

  1. वाह! आखें समंदर....क्या खूब रचा है आपने.......

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  2. samandar haar gaya
    aankhen jeet gai
    wah !
    kya baat hai
    bahut khoob
    haar aur jeet ko kya shabd diye hain ?

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...