साँसों में गुम गयी या नजारों में खो गयी
नज़्म कोई मेरी इन सितारों में खो गयी
दिल के अदब को लहरें देतीं है सलामियाँ
प्यास जो दरिया थी ,किनारों में खो गयी
बात वो दिल कि जिसकी कोई जुबाँ नही
खुशबू बनके उडी और बहारों में खो गयी
दिल के अदब को लहरें देतीं है सलामियाँ
प्यास जो दरिया थी ,किनारों में खो गयी
नींदे ले उडी हैं ......ये ख़्वाबों कि तितलियाँ
जैसे चाँद कि परी इन तारों में खो गयी
होता बेख्यालियों का .अपना ही मिजाज़ है
तरन्नुम थी ग़ज़ल कि जो अशारों में खो गयी
- वंदना
BAHUT KHOOB...
ReplyDeleteNEERAJ
बहुत खूब.. बहुत सुन्दर नज्म..
ReplyDeletebahut khoobsurat tasveer ke sath khoobsurat gajal..
ReplyDeleteबेहतरीन ग़ज़ल....बहुत खूब.....
ReplyDeletebadhiya ji badhiya
ReplyDeleteबहूत हि शानदार गजल है ,
ReplyDeleteखूबसूरत ग़ज़ल.
ReplyDeleteनयी पुरानी हलचल से आना हुआ पहली बार आपके इस ब्लौग पर! बहुत अच्छा लगा!
आज 05/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
sundar...
ReplyDeleteनज़्म कोई मेरी,इन सितारों मेम खो गई,तरन्नुम थी गज़ल,अशारों मे खो गई—क्या खूब.
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