गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...


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आज कुछ पुराने पन्ने पलटे अपने आप से मिलना हुआ. कुछ खूबसूरत पल मुस्कुराकर मिले. मानो खिल से गए हों मुझे लौटते देखकर .. मगर अगले ही पल ज...
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1 मेरी आँखों में ये नमी नहीं..किसी के एहसासों कि कहानी है मैं जिस सागर में डूबकी लगाकर आयी हूँ ये उसकी निशानी है आईना भी हँसता है मेरी बेब...
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...

बढ़िया प्रस्तुति!
ReplyDelete--
घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच ।
लिंक आपका है यहाँ, कोई नहीं प्रपंच।।
बेहतरीन कथन
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया।
ReplyDeleteसादर
सुन्दर
ReplyDeleteआपकी त्रिवेणी की एक और बूंद........मिठास है इसमें और बेहतरीन
ReplyDeleteमांग सजा ली, लहठी पहन ली,
चलो मेले, फिर से तमाशेवाले आये हैं..........
behtreen........
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteसही और सटीक प्रस्तुति...
ReplyDeletekya baat kah di vandna ji..
ReplyDeletedil khush ho gaya yaar :) :)
मौसम तो हर साल आते है और हर साल
ReplyDeleteबदलता है नया साल भी
बस तुम आ जो तो इनमे बहार आ जाये ..
बेहतरीन प्रस्तुती ...