Wednesday, November 2, 2011

त्रिवेणी




खुद ही राह दिखाती है , खुद ही भटकाती है 
जिंदगी तू जिंदगी भर कैसा खेल रचाती है 

एसा भी होता है क्या एक तरफ रास्ता एक तरफ मंजिल? 


- वंदना 

6 comments:

  1. होता है क्या ऐसा ?

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  2. बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  3. जबरदस्त त्रिवेणी ... क्या बात है ...

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  4. अगर पहले जैसी बात होती तो मैं ये तस्वीर चुरा कर यहाँ से किसी को मेल कर देता..लेकिन फ़िलहाल इसे चुरा कर अपने पास ही रख लेता हूँ :)

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