घटती बढती चाँद कि दुनिया
रोज बदलती रात कि दुनिया
इन तारों में ...फिरे भटकती
छोटे से एक खाब कि दुनिया
जुगनू ने झुझलाकर पुछा
कैसी दुनिया किसकी दुनिया
अँधियारा मुस्का कर बोला
भई मेरी दुनिया तेरी दुनिया
हरी घास नम होकर कहती
रहे सलामत ओस कि दुनिया
लाद चली सब चाँद सितारे
जाते ये अन्धकार कि दुनिया
खिड़की खिड़की, सब दरवाजे
खोल गई है भोर कि दुनिया
सब रातों का ..होगा सवेरा
बनी रहे विश्वास कि दुनिया
वंदना
बहुत खूब वंदना जी।
ReplyDelete----
‘जो मेरा मन कहे’ पर आपका स्वागत है
इस खूबसूरत रचना के लिए बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
वाह वाह सकारात्मक सोच को दर्शाती उम्दा अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसबकी अपनी अपनी दुनिया ..सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteखूबसूरत पंक्तियाँ ,खूबसूरत अहसास , कविता तो खूबसूरत ही होगी ना बधाई वंदना जी
ReplyDeleteआपकी उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
ReplyDeleteयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
बनी रहे विश्वास की दुनिया....
ReplyDeleteवाह वाह! सुन्दर....
सादर....
बहुत खूब!
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