Friday, November 4, 2011

घटती बढती चाँद कि दुनिया




घटती बढती चाँद कि दुनिया 
रोज बदलती रात कि दुनिया

इन तारों में ...फिरे भटकती 
छोटे से एक खाब कि दुनिया 

जुगनू ने     झुझलाकर पुछा 
कैसी दुनिया किसकी दुनिया 

अँधियारा मुस्का   कर बोला 
भई मेरी दुनिया तेरी दुनिया 

हरी घास नम होकर कहती 
रहे सलामत ओस कि दुनिया 

लाद चली सब चाँद सितारे 
जाते ये अन्धकार कि दुनिया 

खिड़की खिड़की, सब दरवाजे 
खोल गई है भोर कि दुनिया 

सब रातों का ..होगा सवेरा 
बनी रहे विश्वास कि दुनिया 

वंदना 

8 comments:

  1. इस खूबसूरत रचना के लिए बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  2. वाह वाह सकारात्मक सोच को दर्शाती उम्दा अभिव्यक्ति।

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  3. सबकी अपनी अपनी दुनिया ..सुन्दर प्रस्तुति

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  4. खूबसूरत पंक्तियाँ ,खूबसूरत अहसास , कविता तो खूबसूरत ही होगी ना बधाई वंदना जी

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  5. आपकी उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  6. बनी रहे विश्वास की दुनिया....
    वाह वाह! सुन्दर....
    सादर....

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...