Wednesday, October 19, 2011

ग़ज़ल







फिरता है मन तारा तारा..

खोज लिया अम्बर ये सारा !


इस बंजारे ने कर दीनी ..

जोगन रातें दिन आवारा !



बारिश का पानी है या है

आंसू कोई खारा खारा ...!



सूनी सूनी सी आँखों से ..

बहता जाये काज़ल सारा !



आँखों का ये धोखा है सब..



जुगनू को समझो ना तारा !!



वंदना 

6 comments:

  1. इस बंजारे ने कर दीनी
    जोगन रातें दिन आवारा....
    सुन्दर रचन.... सादर बधाई...

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  2. बहुत खुबसूरत...

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  3. अंतिम शेर में शायद जल्दबाजी में "दोखा" लिख गया है ,उसे धोखा कर दीजियेगा. ग़ज़ल अच्छी है.

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  4. इस बंजारे ने कर दीनी
    जोगन रातें दिन आवारा

    वाह...दाद कबूल करें

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    यहाँ पर ब्रॉडबैंड की कोई केबिल खराब हो गई है इसलिए नेट की स्पीड बहत स्लो है।
    सुना है बैंगलौर से केबिल लेकर तकनीनिशियन आयेंगे तभी नेट सही चलेगा।
    तब तक जितने ब्लॉग खुलेंगे उन पर तो धीरे-धीरे जाऊँगा ही!

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  6. kamal ki gazal hai vandana ji

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...