गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Wednesday, October 19, 2011
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...


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आज कुछ पुराने पन्ने पलटे अपने आप से मिलना हुआ. कुछ खूबसूरत पल मुस्कुराकर मिले. मानो खिल से गए हों मुझे लौटते देखकर .. मगर अगले ही पल ज...
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1 मेरी आँखों में ये नमी नहीं..किसी के एहसासों कि कहानी है मैं जिस सागर में डूबकी लगाकर आयी हूँ ये उसकी निशानी है आईना भी हँसता है मेरी बेब...
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...

इस बंजारे ने कर दीनी
ReplyDeleteजोगन रातें दिन आवारा....
सुन्दर रचन.... सादर बधाई...
बहुत खुबसूरत...
ReplyDeleteअंतिम शेर में शायद जल्दबाजी में "दोखा" लिख गया है ,उसे धोखा कर दीजियेगा. ग़ज़ल अच्छी है.
ReplyDeleteइस बंजारे ने कर दीनी
ReplyDeleteजोगन रातें दिन आवारा
वाह...दाद कबूल करें
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDelete--
यहाँ पर ब्रॉडबैंड की कोई केबिल खराब हो गई है इसलिए नेट की स्पीड बहत स्लो है।
सुना है बैंगलौर से केबिल लेकर तकनीनिशियन आयेंगे तभी नेट सही चलेगा।
तब तक जितने ब्लॉग खुलेंगे उन पर तो धीरे-धीरे जाऊँगा ही!
kamal ki gazal hai vandana ji
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