Friday, October 21, 2011

छणिका..





एक तरफ़ा प्यार 
क्या है ?
मूर्खता 
पागलपन
 श्रद्धा
विश्वास 
पूजा 
 समर्पण 
कमजोरी 
गुनाह  
बेबसी 
घुटन 
दुआ  
आस्था 
या भरम 
?????

सबकुछ 
होकर भी 
कुछ नहीं !!


9 comments:

  1. अच्‍छी अभिव्‍यक्ति !!

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  2. पाने की जहाँ चाह हो वहाँ प्यार ही कहाँ होता है ...

    मूर्खता और बेबसी शब्द ठीक कर लें ..

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  3. सही कहा आपने... सब कुछ होकर भी कुछ भी नही...... सुन्दर अभिवयक्ति.....

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  4. वाह!
    बहुत शानदार अभिव्यक्ति.....
    सादर बधाई...

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  5. सुन्दर शानदार अभिव्यक्ति..बधाई..

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  6. पुराने लेकिन ताज़े ज़ख़्मों को कुरेद दिया इन पंक्तियों ने।
    एक तरफा प्यार मे एक इंसान को कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन कोई दूसरा शायद बहुत ज़्यादा टूट जाता है। वो भी तब जब बहुत बाद मे उसे पता चले कि वो एक हाथ से ताली बजाने की कोशिश कर रहा था।

    आपने बहुत अच्छा लिखा है।

    सादर

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  7. सच कह है ... सब कुछ हो कर भी कुछ नहीं होता एक तरफ़ा प्यार .. बहुत लाजवाब ...

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  8. Nice one....
    Keep writing...

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...