गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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जितना खुद में सिमटते गए उतना ही हम घटते गए खुद को ना पहचान सके तो इन आईनों में बँटते गये सीमित पाठ पढ़े जीवन के उनको ही बस रटत...
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वफायें ..जफ़ाएं तय होती है इश्क में सजाएं तय होती हैं पाना खोना हैं जीवन के पहलू खुदा की रजाएं.. तय होती हैं ये माना... के गुन...
bahut gahri baat
ReplyDeleteवक्त लगता है ..सटीक बात ..
ReplyDeleteसटीक...
ReplyDeleteआपको दीप पर्व की सपरिवार सादर शुभकामनाएं....
बिलकुल सटीक बात कही।
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
कल 25/10/2011 को आपकी कोई पोस्ट!
नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ ………
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति आज के तेताला का आकर्षण बनी है
तेताला पर अपनी पोस्ट देखियेगा और अपने विचारों से
अवगत कराइयेगा ।
http://tetalaa.blogspot.com/
वक्त तो लगता ही है ..
ReplyDelete.. आपको भी दीपावली की शुभकामनाएं !!
गहन भावमय करते शब्द ...दीपोत्सव पर्व की शुभकामनाओं के साथ बधाई ।
ReplyDeleteसुंदर भावनाओ के साथ लिखी रचना,बढ़िया पोस्ट...
ReplyDeleteदीपपर्व की शुभकामनाये.....