Sunday, October 2, 2011

दोहे जैसा कुछ




सांच कहे एक आईना. बात पते कि मान
मूरत देख के सीरत का करिए न अभिमान !

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नेकी उतनी कीजिये जितनी घट समाय
मान घटे जिस और उस पंथ कभी न जाय !

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वंदना


4 comments:

  1. आपकी कवितायें वैगरह मैं अक्सर फीड से पढता हूँ..सबसे अच्छी बात मुझे जो लगती है वो ये की कवितायें तो खूबसूरत होती ही हैं, आप तस्वीरें भी चुन के लगाती हैं,
    खूबसूरती और बढ़ जाती है कवितायों की!!

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  2. bahut bahut shukriyaa aap sabhi ka ,....aabhaari hoon .:)

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...