Thursday, July 21, 2011

जिंदगी किस डगर जाये तुझे कहाँ कहाँ ढूंढें







होके बेकरार मेरी साँसे  आहट ओ सदा ढूंढें, 
रुक रुक के धडकनें  तेरे होने के निशाँ ढूंढें ..!


तू छुप गया किसी गुलशन में खुशबू कि तरह,
आरजू ए दिल ए नादाँ * तुझे बनके हवा ढूंढें ..!


इक तलाश इन आँखों को सौपी गयी हो जैसे,
जिंदगी किस डगर जायें ,तुझे कहाँ कहाँ ढूंढें..!




मेरी आँखों में ठहर गया है बनके हया कोई, 
ये नजरें आईने में फिर ना जाने क्या ढूंढें ..!


मेरे हाथों कि बनायीं तू इक तस्वीर ही तो है, 
फिर किस्मत कि लकीरों में  क्यूं  भला ढूंढें..! 


झांककर देखा जो कभी ,खुद में पाया तुझको,
बेचैनियाँ ये पागल मन की   यहां वहां ढूंढें ..  !


तू महज इक तसव्वुर है दिल के ख़ालीपन का, 

कैसे तुझमे  कोई एहसास ए भरम ए वफ़ा ढूंढें ..!



- वंदना 

15 comments:

  1. दिल को छूने वाली प्यारी-प्यारी सुन्दर अभिव्यक्ति.....

    ReplyDelete
  2. वाह ...बहुत खूब कहा है ..बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

    ReplyDelete
  3. आज 22- 07- 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


    ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
    ____________________________________

    ReplyDelete
  4. वाह वाह वाह मज़ा आ गया दोस्त एक एक शब्द जैसे खुद बोल रहा हो :)
    बहुत ही खूबसूरत गज़ल :)

    ReplyDelete
  5. बहुत ही सुंदर ग़ज़ल...

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर दिल को छू जाता है..

    ReplyDelete
  7. बेचैनियाँ ये पागल मन की, यहाँ-वहाँ ढ़ूँढे
    वाह ! बहुत खूब.
    हर शेर लाजवाब.

    ReplyDelete
  8. हृदयस्पर्शी ग़ज़ल।

    ReplyDelete
  9. बहुत खूबसूरती से लिखे मन के भाव ..खूबसूरत गज़ल

    ReplyDelete
  10. बहुत ही ख़ूबसूरती के साथ आपने यह प्रस्तुति प्रस्तुत की

    ReplyDelete
  11. भावनाओं का मौलिक प्रकटीकरण पसंद आया जी / शुक्रिया .../

    ReplyDelete
  12. खूबसूरत ग़ज़ल , सुन्दर प्रस्तुतीकरण

    ReplyDelete
  13. वाह..बेहद उम्दा ग़ज़ल.. :)

    ReplyDelete
  14. बहुत सुन्दर गज़ल.. एक एक शेर अपनी कहानी खुद ही कह रहा है .. भावनाओं को अच्छे शब्द दिए है आपने ..

    बधाई

    आभार
    विजय

    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

    ReplyDelete

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...