1.
रिश्तों में जज़्बात का क्यूं खो जाता है मोल ,
क्यूं मंहगे हो जाते हैं एक दिन मूह के बोल ??
2.
रिश्तों कि इस भीड़ में कौन , कब ,कहाँ खो जाये ,
रहे आँखों के सामने और अजनबी हो जाये !!
3.
महंगी हो चलीं हैं ..वक्त कि नज़ाकतें,
देखते ही देखते ..रिश्ते गरीब हो गए !!
4.
रिश्तों का सच भी .....देखा है ना वन्दना
फिर उनसे कैसा शिकवा जिनके तुम कुछ भी नहीं !!
5.
रिश्ते - नाते जिन्दगी कि एक कमाई
कुछ वक्त ने लूटी , कुछ हमने गंवाई !!
5.
रिश्ते - नाते जिन्दगी कि एक कमाई
कुछ वक्त ने लूटी , कुछ हमने गंवाई !!
jindgi se riste nhi bante balki risto se jindgi banti hai...
ReplyDeleteबस यही है रिश्तो का सच वन्दना जी।
ReplyDeleteसटीक लिखा है ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसच है कि अब रिश्ते अब सबसे क़ीमती नहीं रहे।
ReplyDeletebehad khoobsoorat
ReplyDeleteसटीक शब्द ...सार्थक रचना...बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteनीरज
गहरे भाव सुंदर अभिव्यक्ति.... शुभकामनायें.
ReplyDeleteकरीब 20 दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
ReplyDeleteआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
गहरे भाव लिये सुन्दर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत उम्दा लिखा है आपने..
ReplyDeleteरिश्तों का सच!!
ReplyDeletekanch k rishte!!
ReplyDeleteRishte bas Rishte hote hain.....kab, kyon kahan banege maloom nahi ....kaise tootenge aur kyon tootenge ye bhi maloom nahi :-)
ReplyDeleteरिश्तों पर खूबसूरत और मार्मिक क्षणिकाएं लिखी है आपने..मेरी बधाई स्वीकारें.
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