Sunday, July 3, 2011

रिश्ते ......


1.

रिश्तों में जज़्बात का क्यूं खो जाता है मोल ,

क्यूं मंहगे हो जाते हैं एक दिन मूह के बोल  ??


2.

रिश्तों कि इस भीड़ में कौन , कब ,कहाँ खो जाये ,

रहे आँखों के सामने और अजनबी हो जाये  !!


3.

महंगी हो चलीं हैं  ..वक्त कि नज़ाकतें,

देखते ही देखते ..रिश्ते गरीब हो गए !!  



4.
रिश्तों का सच भी .....देखा है ना  वन्दना 

फिर उनसे कैसा शिकवा जिनके तुम कुछ भी नहीं !!


5.




रिश्ते - नाते  जिन्दगी कि  एक कमाई 


कुछ वक्त ने लूटी , कुछ हमने गंवाई !!

14 comments:

  1. jindgi se riste nhi bante balki risto se jindgi banti hai...

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  2. बस यही है रिश्तो का सच वन्दना जी।

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  3. सटीक लिखा है ..अच्छी प्रस्तुति

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  4. सच है कि अब रिश्ते अब सबसे क़ीमती नहीं रहे।

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  5. सटीक शब्द ...सार्थक रचना...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  6. गहरे भाव सुंदर अभिव्यक्ति.... शुभकामनायें.

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  7. करीब 20 दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
    आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

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  8. गहरे भाव लिये सुन्दर प्रस्तुति.

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  9. बहुत उम्दा लिखा है आपने..

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  10. रिश्तों का सच!!

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  11. Rishte bas Rishte hote hain.....kab, kyon kahan banege maloom nahi ....kaise tootenge aur kyon tootenge ye bhi maloom nahi :-)

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  12. रिश्तों पर खूबसूरत और मार्मिक क्षणिकाएं लिखी है आपने..मेरी बधाई स्वीकारें.

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...