Saturday, February 12, 2011

है इबादत कोई या दुआ है जिंदगी




है इबादत कोई या  दुआ है जिंदगी 
हर मौसम में बहती हवा है जिंदगी 

बहारो से गुजरे तो महकता गुलशन
पतझड़ में दहकता धुंआ है जिंदगी 

किसी के वास्ते है अंधेरों का सफ़र 
किसी के लिए एक  शुआ है जिंदगी 

खोकर   है पाना ,पाकर है  खोना
इक खेल है   एक जुआ है  जिंदगी 

कौन समझे   सच   किसी का यहाँ 
झूठ जीने   का कारवाँ  है जिंदगी !

"वंदना" 



12 comments:

  1. Bahut khoob ,shuru chaar panktiyan to khoob bhaaeen ...

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  2. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (14-2-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  3. jhooth jeena ka karwa hai zindagi.....is it?? :O :O

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  4. karva to hai hi....saath-saath jhoot ka bazaar hai zindgi...badhiya gazal

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  5. thanks all :)

    @ soumyaa ..i think soo becoz apna sach sirf ham jaante hain ..jindagi me kirdaar jine padte hain :)

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  6. caarvaan to hai....par jhooth nahin....saare gham sari khushi...sab sach hai...thats the sad part !

    beautiful ghazal

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  7. बहुत ही यथार्थ जीवन दर्शन..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  8. वंदना जी,

    पोस्ट बहुत अच्छी लगी....शेर बहुत उम्दा बने हैं.....

    जिंदगी जीने का हर किसी का अलग नजरिया है और जैसा नजरिया वैसी ही जिंदगी.....कभी फूलों सी महकती तो कभी कांटो सी चुभती ये जिंदगी.....बहुत खूब|

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  9. हर शेर अपन आप में मुकम्मल है..

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  10. Bahut badhiya Vandu...kaafi din k baad aaya hun tumhare blog par. Maza aagaya. :)

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  11. वंदना जी !! बहुत ही उम्दा ..हर शेर नायाब ... वाह

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...