तुम्हारे हिस्से कि
सब बाते ..कब की
मौन हो गयी हैं यूँ तो .
.फिर भी देखा है मैंने
अपनी तहरीरो में
शब्दों को छटपटाते हुए
आखिर क्यूं ????
क्यूं जिंदगी का ये इल्जाम
मैं कबूल कर लूं
क्यूं मान लूं दिल का वो झूठ
जो वहम हो सकता है
मगर सत्य कभी नहीं था !
क्यूं मान लूं मैं
इन एहसासों का
ये कड़वा सच
क्या सोचकर पी लूं ये जहर
जो मेरी रगों में उतर चुका है
जब तुम नहीं थे
जिंदगी में कहीं भी
तब भी था कोई
उस चाँद में
उस जुगनूं में
इन हवाओं में
इन फिजाओं में
मेरे सपनो में
मेरे पागलपन में
मेरी नज्मो में
मेरे गीतों में
मेरी बातों में
मेरे वैराग्य में
मेरे अपने ही हाथो से
बनायीं हुई
एक काल्पनिक
तस्वीर कि तरह !
हाँ कुछ तो बदला था
तुमसे मिलकर ...
गुजरते पलों कि खनक
लम्हों में घुली
इन्तजार कि चासनी
महसूस तो कि थी
एक छटपटाहट
इन हवाओ में
इन नन्ही बूंदों में ..
बदल रहा था
मेरा पागलपन ..एक
अजीब सी तड़प में ...
बदल रहा था वो वैराग्य
एक विरह में !
बदल रही थी. ..
मेरी बातो में वो खामोशी
जिसकी गूँज किसी
पागलखाने कि उस खाली
कमरे कि तरह थी
जिसमे किसी को
कैद किया गया हो
खुद कि चीखें सुनने के लिए ..
बदला था बहुत कुछ
मगर किस बात के लिए
मेरे हाथो में अभी भी
वही कैन्वस तो था
जिसपर मैं कल्पनाओं
के चित्र गढ़ती थी
किरदार बनाती थी ..
उतारना चाहती थी
शायद एक सच्ची तस्वीर को
शायद एक सच्ची तस्वीर को
अपने काल्पनिक और
झूठे रंगों से
सिर्फ उस कैन्वस पर ..
मगर उम्मीदों में कभी नहीं,
न ही सपनो में...
मैंने भूलकर भी कोई
सच्ची तस्वीर नहीं गढ़ी ..
कैसे स्वीकार कर लूं
वो कोई भी खता
जो कि नहीं
मगर पल पल कि
ये मुकम्मल सजाएं
क्यूं कहती हैं
गुनहगार मुझे ?
नहीं देखना चाहती
अपनी तहरीरो में
एक असत्य को
अपना अस्तित्व
कायम करते !!
"ये नजरिये का झूठ ...ये दिल के वहम ..
मुझे नहीं मालूम मोहब्बत किसको कहते हैं
मगर खुद्खुशी शायद इसी को कहते हैं !!
"वन्दना "
आदरणीय वंदना जी..
ReplyDeleteनमस्कार
कोमल अहसासों से परिपूर्ण एक बहुत ही भावभीनी रचना जो मन को गहराई तक छू गयी ! बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !
भावों का सुन्दर समन्वय्।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर एहसासों से भरी रचना...
ReplyDeleteआपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (19.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
ye last para me aapne sahi kaha h...... khudkushi shayad isi ko kahte hai...... haan sayad kahte h.
ReplyDeleteप्रेम के सुंदर एहसास ,अच्छी रचना
ReplyDeleteनज़्म का चतुर्थ परिच्छेद में गज़ब का तूफ़ान सिमट आया है.
ReplyDeletebohot bohot bohot khoobsurat nazm.....i think aapko aur nazmein likhni chahiyein, its amazing
ReplyDeleteअपनी ही झलक दिखाई दी इसमें, खुद को यूँ देखना अच्छा लगा...बढ़िया
ReplyDeletesaari baat last ki triveni keh gayi...no words for it...keep reaching hearts :)
ReplyDeletebahut der se aapke blog par aapki nazmo ko padh raha hoon , pahli baar aaya honn , bahut accha laga .. man me utrati hui ye nazm , bahut kuch kahti hui ....
ReplyDeletesalaam
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मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
विजय
बहुत ही रूमानी अंदाज़ है आपका वंदना जी!
ReplyDeleteआप लिखती रहे हम पढ़ते रहें
दिली ख्वाहिश है ये सिलसिले यूँ ही चलते रहें....