Monday, August 16, 2010

सूरज.




आज सांझ सूरज...
कुछ अलसाया हुआ सा,
शफक पर
ठहरा रहा कुछ देर ..
जैसे .. रात का अभी
कुछ श्रंगार बाकी था !!


12 comments:

  1. पूरब से उगता है जो, और पश्चिम में छिप जाता है!
    वह प्रकाश का पुंज, हमारा सूरज कहलाता है!

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  2. वन्दना जी .
    रचना संवेदनाओं की सरस अभिव्यक्ति है ।
    प्रशंसनीय ।

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  3. बेहद प्रभावी रचना !!

    हमज़बान यानी समय के सच का साझीदार
    पर ज़रूर पढ़ें:
    काशी दिखाई दे कभी काबा दिखाई दे
    http://hamzabaan.blogspot.com/2010/08/blog-post_16.html

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  4. bahut hi umdaah rachna....

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  5. अलसाया सूरज ...बहुत सुन्दर

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  6. vaah.............behad khoob bhaav bhara hai.

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  7. raat ka sringaar usko jaldi dhalne pe majboor nahi kar dega kyaa??..not being able to exactly gather the meaning of the line...

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  8. बहुत सुन्दर

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  9. @ all ...bahut bahut shukriyaa aap sabhi ka yahan tak aane or sarahne ke liye ..aate rahiyega ....thnks:)

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  10. @ sajal ji ....sooraj tab jayega shafak se jab raat aayegi ..or raat bina poora srangaar kiye nahi aa rahi ..kuch der or thahar kar raat ki raah tak rha tha :D:D:D

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  11. बाकमाल लिखा है आपने ........ इसी तरह आपकी सोच को परवाज़ मिलता रहे.

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...