Saturday, April 24, 2010




" वो परिंदा मेरी मुंडेर से बड़ी हैरत में उड़ा,

कहीं दूर चलूँ यहाँ पिंजर ए दस्तूर बहुत हैं ....

ऐ मोला ,मैं बसर करता रहूँ पंछी बनके हर जनम ,

इंसानों कि बस्ती में तो हर कोई मजबूर बहुत हैं ...."

11 comments:

  1. चल उड़जा रे पंछी ..यहाँ तेरा ठिकाना नहीं

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  2. इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

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  3. Insaano ki basti mein har koi majboor bahut hain ......majbooriyan apni jagah hain aur dooriyan apni jagah :-)

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  4. bahut khub kaha aapne....
    इंसानों कि बस्ती में तो हर कोई मजबूर बहुत हैं ....
    waah...
    regards
    http://i555.blogspot.com/
    idhar ka v rukh karein..
    nayi rachna..
    intzaar,,,,

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  5. thought achha hai vandu.... craft pe aur kam karo...

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  6. @ priya ..majbooriya apni jagah hai or dooriya apni jagah?? jara detail me batao :)
    and thanks a lott for coming :)

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  7. क्या बात...!

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  8. -------------------------------------
    mere blog par is baar
    तुम कहाँ हो ? ? ?
    jaroor aayein...
    tippani ka intzaar rahega...
    http://i555.blogspot.com/

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  9. vandna, your writings are like a miracle, congrachulations for good NaZms.

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  10. इंसानों कि बस्ती में तो हर कोई मजबूर बहुत हैं ...."
    sundar chitramayee prasuti...

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...