" वो परिंदा मेरी मुंडेर से बड़ी हैरत में उड़ा,
कहीं दूर चलूँ यहाँ पिंजर ए दस्तूर बहुत हैं ....
ऐ मोला ,मैं बसर करता रहूँ पंछी बनके हर जनम ,
इंसानों कि बस्ती में तो हर कोई मजबूर बहुत हैं ...."
गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
चल उड़जा रे पंछी ..यहाँ तेरा ठिकाना नहीं
ReplyDeleteइन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
ReplyDeleteInsaano ki basti mein har koi majboor bahut hain ......majbooriyan apni jagah hain aur dooriyan apni jagah :-)
ReplyDeletebahut khub kaha aapne....
ReplyDeleteइंसानों कि बस्ती में तो हर कोई मजबूर बहुत हैं ....
waah...
regards
http://i555.blogspot.com/
idhar ka v rukh karein..
nayi rachna..
intzaar,,,,
thought achha hai vandu.... craft pe aur kam karo...
ReplyDeletethanks a lott averyone :)
ReplyDelete@ priya ..majbooriya apni jagah hai or dooriya apni jagah?? jara detail me batao :)
ReplyDeleteand thanks a lott for coming :)
क्या बात...!
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ReplyDeletemere blog par is baar
तुम कहाँ हो ? ? ?
jaroor aayein...
tippani ka intzaar rahega...
http://i555.blogspot.com/
vandna, your writings are like a miracle, congrachulations for good NaZms.
ReplyDeleteइंसानों कि बस्ती में तो हर कोई मजबूर बहुत हैं ...."
ReplyDeletesundar chitramayee prasuti...