Saturday, May 2, 2009

खुसनसीब हूँ

संगत कवियों की मिल गयी मुझे..... .,
मानो झूठ की इस जागीर में सच्चाई के नजराने मिल गए
मेरी गुमनाम राहों को सफ़र सुहाने मिल गए
खुद को कवि कहूं ,इतनी तो ओकात नहीं मेरी
बस खुद से बतियाने के मुझे अब बहाने मिल गए ....

1 comment:

  1. बस खुद से बतियाने के मुझे अब बहाने मिल गए
    wah wah! ye bahane bahut khoobsurat hain... batiyati raho..... aur uhi muskurati raho :-)

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...