अपँग बैलो की जोट में ..जोड़ दिया हल ..बिन हाली बिन फाला
खेत मेरे का कैसा नसीब, जब लंगडा जोतन वाला*
(ये एक पहेली है जिसका जवाब है "भारत" )
{ज्यादा उलझना न पड़े इसलिए सुलझाती हूँ ...अपँग बैल =राजनितिक दल
हल = सरकार
हाली, फाला(हल के पुर्जे )=अshixit नेता और अव्यवस्थित कानून
खेत = भारत
लंगडा जोतन वाला =उम्र के थके ,(जो अपना बोझ नहीं उठा सकते वो देश का कसे उठा पाएँगे )
(ये पंक्ति मैंने प्रवासी भारतीय होने की हैसियत से नही एक छोटे से भारतीय किसान परिवार की सदस्य होने के नाते कही है .....
क्योकि ....
छोटे शहर का वो बड़ा शोरगुल, वो सिटी बस के धक्के याद गए
वो हर चोराहे पर लगती पैठ ,वो जाम और चक्के याद आ गए
वो मेरठ विक्टोरिया पार्क में लगी आग, वो जलते पंडाल याद आगए
वो गुर्जरों दुआरा aarakchan के नाम् पर मचाये गए बवाल याद आगए
**किस मुँह से उन गैर मुल्क जालिमो (आंतकियों )को दोष दे दूं
जब अपनों के मचाये आतंक और आकाल याद आ गए
इससे पहले की मेरी कलम स्लम डॉग की तरह एक कड़वे उपहास तक जाती
मुझे शब्दों के संस्कार याद आ गए ......................
गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Saturday, May 2, 2009
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
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जितना खुद में सिमटते गए उतना ही हम घटते गए खुद को ना पहचान सके तो इन आईनों में बँटते गये सीमित पाठ पढ़े जीवन के उनको ही बस रटत...
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वफायें ..जफ़ाएं तय होती है इश्क में सजाएं तय होती हैं पाना खोना हैं जीवन के पहलू खुदा की रजाएं.. तय होती हैं ये माना... के गुन...
ye kavit to man to choo gai.. near to reality.. bahut sunder presentation hain ......keep writing
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