उम्र के ये कैसे मोड़ आ गए , मेरी मासूमियत कहाँ नीलम हो गयी
मेरी मुस्कुराहटो पर गंभीर निगाहें तन गयी ,नादानीया मेरी बदनाम हो गयी
मेरे चेहरे पर छलकती उदासी को भोलापन समझा समझदारों ने
मेरी तरह नादान थे वो जिन्हें इन सवालों की पहचान हो गयी
(वंदना)
गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Friday, May 1, 2009
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...

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खुद को छोड़ आए कहाँ, कहाँ तलाश करते हैं, रह रह के हम अपना ही पता याद करते हैं| खामोश सदाओं में घिरी है परछाई अपनी भीड़ में फैली...
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बंद दरिचो से गुजरकर वो हवा नहीं आती उन गलियों से अब कोई सदा नहीं आती .. बादलो से अपनी बहुत बनती है, शायद इसी जलन...
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बरसों के बाद यूं देखकर मुझे तुमको हैरानी तो बहुत होगी एक लम्हा ठहरकर तुम सोचने लगोगे ... जवाब में कुछ लिखते हुए...
thoda sambhal ke kadam rakho dear:-) slip hone ke chances jayada hain:-) anyways..... Nice poem indeed
ReplyDeletebahut accha
ReplyDeleteमेरे चेहरे पर छलकती उदासी को भोलापन ye panktiya to atyant hee mukhar hain .