गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...


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आज कुछ पुराने पन्ने पलटे अपने आप से मिलना हुआ. कुछ खूबसूरत पल मुस्कुराकर मिले. मानो खिल से गए हों मुझे लौटते देखकर .. मगर अगले ही पल ज...
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1 मेरी आँखों में ये नमी नहीं..किसी के एहसासों कि कहानी है मैं जिस सागर में डूबकी लगाकर आयी हूँ ये उसकी निशानी है आईना भी हँसता है मेरी बेब...
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तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 8-2-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1883 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteवाह ... बहुत ही गहरी नज़्म ....
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर पंक्तिया ... वाह ....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आप सभी लोगो का हार्दिक स्वागत है.