Friday, February 6, 2015

नज़्म




ख़ामोशी 
जब्त के पहलू में 
जमा होता 
बेबशी का वह 
ढेर है जिसमें 
धीरे धीरे करके 
दब जाता है 
इंसान का वजूद 

और एक रोज़ जब 
दफ़न हो जाती हैं 
रूह की चीखें 
 तो उसी ढेर पर 
उग आते  हैं बबूल 

इश्क की ज़ात का 
गुलाब से बबूल होना ही 
जिंदगी के उस 
सफर की गवाही है 
जो फूल बनने की 
हसरत में 
कांटो ने तय किया है !





~ वंदना 


  



4 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 8-2-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1883 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  2. बहुत ही सुन्दर

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  3. वाह ... बहुत ही गहरी नज़्म ....

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...