मैं सोचो में तुम्हारी
खुद से खीज उठती हूँ
जब खामोशियाँ मुझको
गहराई का हवाला देकर
पैदा करती हैं मुझमें
डूब जाने का डर
जब गले की रुदन
मुट्ठी में कैद
उँगलियों में उतर आती है
तमाम ज़हमतों के बाद
जब सुलझ ही नही पाते
मेरी साँसों में
अटके हुए मिसरे
जब चाहकर भी जुबाँ
दिल का साथ नही देती
जब मेरी आवाज़
चुप्पियों के लिबाज़ पहन
दफ़न हो जाती हैं कहीं
जब मेरी आवाज़
चुप्पियों के लिबाज़ पहन
दफ़न हो जाती हैं कहीं
तो अक्सर याद आती है मुझे
मुझमें वो बेबाक सी लड़की !
~ वंदना
बहुत ही मार्मिक रचना . .. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती ... वाह!
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आप सभी लोगो का हार्दिक स्वागत है.
very nice...
ReplyDeletenice
ReplyDeleteकाफी हद तक इन शब्दों के मायने महसूस किये।
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना
आभार
बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteVery nice presentation...
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeletebahut bahut abhar aap sabhi ka ..:)
ReplyDeleteसुंदर अतिसुंदर।
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