आओ नए साल
तुम्हारे लिए मैंने
बहुत काम रखें हैं
बुना है जिसे उंगलियों पर
मैंने अपनी यादों में
तुम्हे वह वक्त मिटाना है
बहुत कुछ पड़ा है
ज़हन की आलमारी में
जिसे तुमको उठाना है
मुझे आज़ादी दिला देना
गिरहों की इस जकड़ से
खोल देना ज़हन में पड़ी
तमाम गाठों को
बहुत गहरा है
वक्त का ये ठहरा हुआ सागर
मुझे डूब जाने का डर है
तुम प्लीज़ पार करा देना
खामोशियाँ मुझमें
एक हिम के शिवाले सा
आकार लेती हैं
तुम उसको मिटा देना
गला देना
मेरे मारे हुए मन का
हारी हुई अना से
समझौता जरूरी है
बस यही एक बात
छोटी सी
इस दिल को बता देना
किया है गुज़रे वक्त ने
मेरी रूह को बोझिल
बस कांधो को थोड़ा तुम
और मजबूत बना देना
हर बोझ मुझे अपना
खुद ही ढोने की आदत है
ऐ आते हुए साल तुम्हारा स्वागत है !!
हर बोझ मुझे अपना
ReplyDeleteखुद ही ढोने की आदत है
ऐ आते हुए साल तुम्हारा स्वागत है !!
,,..बहुत बढ़िया ...
अपना हाथ जगन्नाथ
होना ही चाहिए ..
बहुत खूब .. गहरी रचना ... नव वर्ष की मंगल कामनाएं ...
ReplyDeleteसार्थक भावप्रणव रचना।
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