Monday, February 17, 2014

दिल एक पटरी का मुसाफिर है




रह गया बहुत कुछ पीछे 
कुछ बहुत आगे निकल गया 

मगर वो बहुत कुछ 
जो मुझमे ठहरा हुआ है 

गुजरते कारंवा में 
एक परछाई सा 

वो मेरे हिस्से का मौन 
और तेरे हिस्से का शोर है 

जिसके भरे होने में भी 
खाली है जिंदगी 
किसी प्याले कि तरह 

वक्त कि टूटन से 
झांकते  लम्हे हैं 
जिन्हे  शिकायत है 
उनके हिस्से में 
 दोराहा न होने कि 


जहन में पलकर 
बूढा होता 
यादों का बरगद 
इसे कौन समझाए 


दिल एक पटरी का मुसाफिर है 
जो नही चुनता वक्त के दोराहे !



- वंदना 














4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना बुधवार 19/02/2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in
    आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. बहुत ही सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति।

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  3. बहुत सुन्दर!!

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  4. बहुत सुन्दर ....

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