रह गया बहुत कुछ पीछे
कुछ बहुत आगे निकल गया
मगर वो बहुत कुछ
जो मुझमे ठहरा हुआ है
गुजरते कारंवा में
एक परछाई सा
वो मेरे हिस्से का मौन
और तेरे हिस्से का शोर है
जिसके भरे होने में भी
खाली है जिंदगी
किसी प्याले कि तरह
वक्त कि टूटन से
झांकते लम्हे हैं
जिन्हे शिकायत है
उनके हिस्से में
दोराहा न होने कि
जहन में पलकर
बूढा होता
यादों का बरगद
इसे कौन समझाए
दिल एक पटरी का मुसाफिर है
जो नही चुनता वक्त के दोराहे !
- वंदना
आपकी लिखी रचना बुधवार 19/02/2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in
आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत ही सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ....
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