गुम गये शायद
वो सिक्के इबादत के
दौडती जिंदगी ने जो
ठहरे पानी में फेंके थे !!
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खुद को भूल बैठे हैं
तुमको गवां बैठे हैं
एक दोस्त कि कमी
अक्सर खलेगी हमको
आवारगी के दिन
जब भी याद आयेंगे !!
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टूटे तो बहुत मगर
घुटनो पे नही आए
इश्क में सस्ते कोई
सौदे नही भाए
अपने भी हिस्से आयी है
इतनी बेगुनाही तो
~ वंदना
बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
ReplyDeleteअभिव्यक्ति.......
वाह ... बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बेहरतीन
ReplyDeleteलाजवाब हैं तीनों क्षणिकाएं ...
ReplyDeletebehtreen rachna...
ReplyDeletePlease visit my site and share your views... Thanks
बहुत सुंदर रचना !!
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