Thursday, December 12, 2013

छणिकाएं




गुम गये शायद 

वो सिक्के इबादत के 
दौडती जिंदगी ने जो 
ठहरे पानी में फेंके थे !!

*********



खुद को भूल बैठे हैं 

तुमको गवां बैठे हैं 
एक दोस्त कि कमी 
अक्सर खलेगी हमको 
आवारगी के दिन 
जब भी याद आयेंगे !!


**********


टूटे तो बहुत मगर 

घुटनो पे नही आए 
इश्क में सस्ते कोई 
सौदे नही भाए 
अपने भी हिस्से आयी है 
इतनी बेगुनाही तो 


~ वंदना







6 comments:

  1. बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
    अभिव्यक्ति.......

    ReplyDelete
  2. बहुत बेहरतीन

    ReplyDelete
  3. लाजवाब हैं तीनों क्षणिकाएं ...

    ReplyDelete
  4. behtreen rachna...

    Please visit my site and share your views... Thanks

    ReplyDelete
  5. बहुत सुंदर रचना !!

    ReplyDelete

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...