पथराई सी आँखों मे आँसू बो रहा है
मुझमे न जाने कौन बैठा रो रहा है
मुझसे ये मेरे ही वजूद कि लड़ाई है
मुझसे ये मेरे ही वजूद कि लड़ाई है
मैं उसको और वो मुझे खो रहा है
करीब आती हुई मंजिलों का क्या करूँ
की मेरा जूनून ऐ सफ़र खो रहा है
की मेरा जूनून ऐ सफ़र खो रहा है
न बाकी है दरिया में अब हलचल कोई
प्यासी मछलियों का दमन हो रहा है
हम कटते हुए शज़र पे छाँव को रोये
दुःख उस परिंदे का जो बेघर हो रहा है
धुंधलाने पे आ गया है अब वही चेहरा
एक उम्र आँखों के खामेजां जो रहा है
लरजती गरजती हवाओं से ये कह दो
बादल कि गोद में आज महताब सो रहा है
चल ही गये अपनी भी दुआओं के सिक्के
मुरादों में हमारी भी अब असर हो रहा है
वंदना
प्यासी मछलियों का दमन हो रहा है
हम कटते हुए शज़र पे छाँव को रोये
दुःख उस परिंदे का जो बेघर हो रहा है
धुंधलाने पे आ गया है अब वही चेहरा
एक उम्र आँखों के खामेजां जो रहा है
लरजती गरजती हवाओं से ये कह दो
बादल कि गोद में आज महताब सो रहा है
चल ही गये अपनी भी दुआओं के सिक्के
मुरादों में हमारी भी अब असर हो रहा है
वंदना
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि का लिंक आज रविवार (25-08-2013) को पतंग और डोर : चर्चा मंच 1348
में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बेहतरीन गजल...
ReplyDelete:-)
khubsurat gazal...
ReplyDeleteन बाकी है दरिया में अब हलचल कोई
ReplyDeleteप्यासी मछलियों का दमन हो रहा है
बेहतरीन वंदना जी
सुंदर गजल
ReplyDeleteमुरादों का असर हो रहा है तो थोडा खुशनुमा भी लिखें आप!
ReplyDeleteजारी रखिये ..
न बाकी है दरिया में अब हलचल कोई
ReplyDeleteप्यासी मछलियों का दमन हो रहा है
बेहतरीन गजल वंदना जी
bahot khoob!!!
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