थक जायेंगे तो यहीं लौटकर आयेंगे
हम खुद से बाहर कहाँ तक जायेंगे
झंझोड़ कर जगा दे इस खाब से कोई
वरना उम्मीदों के पर निकल आयेंगे
कोई तस्लीम* बाकी हो दरमियाँ अपने
इतना अगर घुटेंगे तो मर ही जायेंगे !
हर चेहरे पे लिखी है एक ही कहानी
कितनी आँखों में खुद को पढ़ते जायेंगे
कबूलते हैं आज अपने हिस्से का सच
अपने आप से कब तक मुकरते जायेंगे
जिंदगी तुझको ये पहले से बताना था
मौत से पहले भी ऐसे सबात*आयेंगे !
वंदना
Tasleem - greeting , Sabaat - thahraav
वाह...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ग़ज़ल....
कितनी आँखों में खुद को पढ़ते जायेंगे....
बढ़िया...
अनु
खूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर ग़ज़ल आदरेया सभी के सभी अशआर लाजवाब हैं हार्दिक बधाई स्वीकारें होलिकोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शुक्रवार के चर्चा मंच-1198 पर भी होगी!
सूचनार्थ...सादर!
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होली तो अब हो ली...! लेकिन शुभकामनाएँ तो बनती ही हैं।
इसलिए होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
sundar gajal ...
ReplyDeletebehtrin
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