गीत, ग़ज़ल, नज्म ..ये सब मेरी साँसों कि डोर, महंगा पड़ेगा बज्म को मेरी खामोशियों का शोर ! --- "वन्दना"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
-
तुम्हे जिस सच का दावा है वो झूठा सच भी आधा है तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं कोरे मन पर महज़ लकीर...
-
जितना खुद में सिमटते गए उतना ही हम घटते गए खुद को ना पहचान सके तो इन आईनों में बँटते गये सीमित पाठ पढ़े जीवन के उनको ही बस रटत...
-
वफायें ..जफ़ाएं तय होती है इश्क में सजाएं तय होती हैं पाना खोना हैं जीवन के पहलू खुदा की रजाएं.. तय होती हैं ये माना... के गुन...
किस शेर की तारीफ़ करूँ ..सारे शेरों ने मौन कर दिया है ...
ReplyDeletebahut bahut shukriyaa
Deleteकिस शेर की तारीफ़ करूँ ..सारे शेरों ने मौन कर दिया है ...
ReplyDeleteबढ़िया ग़ज़ल!
ReplyDeletebahut shukriya
Deleteखुश्बूओं के पर बड़े सुनहले हैं....खूबसूरत
ReplyDeletebahut aabhaar
Deleteबहुत खूबसूरत गज़ल
ReplyDeletebahut dhanyavad
Deleteबेहतरीन गजल
ReplyDeleteshukriyaa
Deleteबहुत बढ़िया...
ReplyDeleteसभी शेर एक से बढ़ कर एक....
अनु
shukriya aapka
Deleteवाह .... सभी शेर लाजवाब ... नए अंदाज़ के ...
ReplyDeletebahut bahut shukriya
Deleteaabhaar aapka
ReplyDeleteaabhaar
ReplyDelete