Thursday, January 17, 2013

फांसले


फांसले 
जिन्दगी कि जड़ो में 
गहराती हुई 
एक परिभाषा 


फांसला जमीं आसमां के बीच का 
फांसला डूबते सूरज और उगते चाँद के बीच
उनकी सीमाए तय करता

लेकिन इन फासलों में
ही सांस लेता है
सबका अपना अपना वजूद
वो हैं क्योकिं फासले हैं


अच्छे लगने लगे हैं
मुझे ये फासले

फासलें राही और मंजिल के
सपने और हकीकत के
फासले शफक और उफक के
फांसले उम्मीद और भरम के

फांसले ..
एक नदी के दो किनारों के

फासले हैं ...तो किनारे हैं
किनारें हैं ..तो बहाव है
बहाव है .. तो नदी है
नदी है ...तो  तृप्ति है


और जीवन की इसी
तृप्ति को मैंने
जिया हैं इन फासलों में
जिनमे सांस लेता
एक पहला पहला  प्यार
मेरी अहसासों की जीवितता को
हमेशा धड़कने बख्सता रहेगा ...

और हम अपनी अपनी
जगह लिए हुए
 यूँ  ही रहेगें
......
 "मैं " .......... .... .....".तुम "
ये फांसलें !




- वंदना



























7 comments:

  1. बहुत खूब .... वैसे थोड़े फासले से प्यार बना रहता है

    ReplyDelete
  2. नदी के दो किनारों में फासले न होते तो नदी कहाँ होती....??

    बहुत सुन्दर ख़याल..
    बहुत अच्छी रचना..

    अनु

    ReplyDelete
  3. बहुत मुखरित भावप्रणव रचना!

    ReplyDelete
  4. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (19-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

    ReplyDelete
  5. सुन्दर भाव पूर्ण रचना ...

    बधाई !

    ReplyDelete
  6. बहुत खूब लि‍खा है...बधाई

    ReplyDelete

तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...