Monday, December 31, 2012

पुल



         लड़की को रोज सुबह एक नदी के पुल वाले रास्ते से गुजरना होता है, नदी के दुसरे छोर से उगते हुए सूरज कि तपिश से नदी में उठती  धुंध  ऐसी  मालूम होती हैं  जैसे नदी सांस ले रही हो और उसकी साँसों में महक रही हो सारी फिज़ा ....उठते हुए बादलों के बीच से गुजरना सुबह का सबसे सुंदर और अच्छा लम्हा होता है ..जिससे महकता रहता है उसका  दिन . और जब शाम को काम से आते वक्त वहीँ  से होकर लौटती है तो  देखती है उस उगते  हुए चाँद को ..चाँद कि दुनिया कभी घटती कभी बढती ...और कभी कभी अमावश कि काली रातों में उजड़ी हुई दिखाई देती है |
               
     अपने भीतर के जिस ठहराव  को बाँधने में उसने अपने  तीन साल बिता दिए ...वो हर रोज दो बार उस पुल पर बिखरता हुआ महसूस होता है. क्योकिं एक ऐसे ही खामोश पुल को उसने जिन्दगी में अपने आप से पार उतरने का जरिया बनाया हुआ है जिसका नाम है ख़ामोशी ........वो भटकने लगती है अपने आप में कहीं. ...कुछ बिखरने लगता है रेत कि तरह उन महकते हुए झोकों के साथ और किरक उठती हैं  कुछ चाही -अनचाही सी यादे.
      अनगिन अजन्मी नज्मों में उलझ जाती है  ......जकड लेती हैं उसे अपनी ही साँसे ...भर आती है रुदन  गले कि रगों तक  ..बार बार झाँकती है अपने जहन में .....उन सवालों के जवाब ढूँढने के लिए .....जो लिपटे हुए हैं  उसकी रूह से किसी सांप कि तरह ..मानो चन्दन हो रहा हो वजूद उसका.


क्या वो अपने ही बुने हुए किसी भ्रम जाल में फंस कर रह गयी है ?
 ...इतनी जद्दोजहद किस लिए ..क्या हैं  ये गिरहें .. ये कशमकश  !
सायद एक कहानी जिसके किरदार धुंधलाने लगे हैं ....मगर इस धुंध में अहसास भटक रहे हैं उसी ताजा हवा के झोके कि तरह .. दिशा हीन ...जिनका न वजूद  मालूम होता है न अस्तित्व ...........मगर फिर भी हैं   बस  उन्ही कुछ चीज़ों कि तरह जो दिखाई नहीं पड़ती मगर  हैं इस प्रकृति का हिस्सा बनकर जिनका वजूद भी और अस्तित्व भी !


- वंदना

4 comments:

  1. वर्तमान माहौल से हट कर
    आपकी इस रचना को पढ़ कर अनहद खुशी हुई
    सादर

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  2. मंगलमय नव वर्ष हो, फैले धवल उजास ।
    आस पूर्ण होवें सभी, बढ़े आत्म-विश्वास ।

    बढ़े आत्म-विश्वास, रास सन तेरह आये ।
    शुभ शुभ हो हर घड़ी, जिन्दगी नित मुस्काये ।

    रविकर की कामना, चतुर्दिक प्रेम हर्ष हो ।
    सुख-शान्ति सौहार्द, मंगलमय नव वर्ष हो ।।

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  3. नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...