इस रात का अब हमें सवेरा नही चाहिए
तू सूरज है तो उजाला तेरा नही चाहिए
जो न हो दिल में चेहरे पे अच्छा नही लगता
रफाकत में रंजिशों का पहरा नही चाहिए
ये दिल वो पर कटा एक परिंदा है जिसे
आसमानों का कोई अब फेरा नही चाहिए
कमजोर बनाता है ये दीदार ए चाँद हमें
नींदों में अब कोई रैन बसेरा नही चाहिए
जिया है हमने टूटते हुए हर भरम को
पलकों पे कोई ख़्वाब सुनहरा नही चाहिए
इबादत कि है दिल से तो पहुंचेगी जरूर
टूटकर गिरता हुआ ये तारा नही चाहिए
वो आँखे ही काफी थी खुदखुशी के लिए
इस जन्म तो दूसरा अब झेरा नही चाहिए
चल जिन्दगी तुझे अब बागबानी सिखाते हैं
दिल कि जमीं पे अब कोई सहरा नही चाहिए !
वंदना
बेहद खूबसूरत सुन्दर रचना
ReplyDeleteअरुन शर्मा
www.arunsblog.in
बहुत सुंदर मन के भाव ...
ReplyDeleteप्रभावित करती रचना .
बहुत सुंदर.....
ReplyDelete....ये सब मेरी सांसों कि डोर...
यहां कि..को ..की कर लीजिए...
आपकी ग़ज़ले बहुत अच्छी हैं..
मेरी एक योजना है मेरे ब्लॉग पर आकर जानकारी ले लीजिए...
आपका स्वागत है.रचनाएं वाकई अच्छी हैं. मैं अच्छी रचनाओं की तलाश में ही हूं...