हो जाए ऐसा खुदा न खास्ता तो
याद आये भूला हुआ रास्ता तो
नींदों में हमें है चलने कि आदत
अगर शिद्दत से वो पुकारता तो
खामोशियों को जुबां हमने जाना
कयामत ही होती गर बोलता तो
होता यूँ के टूटते बस भरम ही
गर जाते में उसको टोकता तो
उसी कि नजर का जवाब हम थे
आईने में खुद को निहारता तो
मर के भी मैं जी उठूंगा शायद
दिया अपना जो उसने वास्ता तो
बहुत बढ़िया गजल |
ReplyDeleteआपके इस प्रविष्टी की चर्चा बुधवार (21-11-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
सूचनार्थ |
बहुत खूब .... आईने में देखता तो ... खूबसूरत गज़ल
ReplyDeleteक्या बात है..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गजल...
ReplyDelete:-)
बेहतरीन ग़ज़ल ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भावप्रणव प्रस्तुति!
ReplyDeleteवाह वंदना जी क्या बात है बेहद सुन्दर ग़ज़ल
ReplyDeleteअरुन शर्मा - www.arunsblog.in
khubsurat gazal...
ReplyDeleteवंदना जी आपकी इस रचना को
ReplyDeleteकविता मंच और हमारा हरयाणा ब्लॉग पर साँझा किया गया है
संजय भास्कर
http://kavita-manch.blogspot.in
http://bloggersofharyana.blogspot.in