यादों के आईने में जब माजी से आँख मिलाते है
कोई रंगत हँसा देती है अपने भरम रुलाते हैं
तेरी ख़ामोशी बनी बहाना अपनी हर इक चुप्पी का
बेसबब कुछ बात करों कि ताल्लुक घटते जाते हैं
पलके उठाकर दे दो रिहाई रोशन खाब बिचारों को
अंधियारों से लड़ते जुगनूं कब से आस लगाते हैं
कोई कहदे चाँद से जाकर समेट सके तो समेट ले
चांदनी कि इस रिदा पे चलके तसव्वुर आते जाते हैं
तन्हाई में खुद के होने का जिन्दा ये एहसास तो है
खुद से बाहर निकलो तो ये सायें भी खो जाते हैं
यूँ हि पुकारा आपने तो ....हैरत लाज़मी अपनी
अजनबी सी सदाओं से तो फरिस्ते भी डर जाते हैं
कोई खुशबू भटक रही है इन आँखों के वीराने में
खो गये हैं मौसम ए गुल कि कहीं नजर नही आते हैं
चलो छोडो अब रहने भी दो कोई और बात करो
बीत जाएँ जो पल वंदना कहाँ लौट कर आते हैं
- वंदना
बहूत सुंदर बेहतरीन गजल....
ReplyDeleteवाह..............
ReplyDeleteबहुत प्यारी गज़ल.
अनु
बहुत खुबसूरत गजल....
ReplyDeletebauhat khoob...can feel the pain!!
ReplyDeletebahut khub surat...:)
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