Friday, May 18, 2012

ग़ज़ल


न दर्द न गिला  न चुभन कोई 
घुट के रह गयी है घुटन कोई !

शिद्दत से मुस्कुराईं हैं नम आँखें 
है जरूर राज़ इनमे  दफ़न कोई 

खुद को खुद में न तुम कैद रक्खो 
जला  दे न तुमको जलन  कोई 

बनते उधड़ते ख्यालों के कसीदे.. 
ज्यों मची हो जहन में रुदन कोई 

खिड़कियों से तेरी आदतन गुफ्तगू 
क्या सुनती है तुझको पवन  कोई ?

अपने गम से ना तुम हार जाना 
देखो, पड़ने न पाए शिकन कोई 

जिधर से आता है घर में अँधेरा 
आती है वहीं से ही  किरन कोई !

- वंदना 




10 comments:

  1. शिद्दत से मुस्कुराईं नम आँखें
    है जरूर राज़ इनमे दफ़न कोई ... वाह

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  2. बहुत बढ़िया |
    बधाई स्वीकारें ||

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  3. बहुत बढि़या प्रस्‍तुति।

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  4. ब्ऴुत खुबसूरत गजल.........

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  5. behtareen gazal vandana ji

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  6. वंदना जी, बहुत ही बढ़िया गजल... आनंद आ गया... जय हो.

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  7. अँधेरे के डर से ना खिड़कियाँ बंद हो , रोशनी भी तो वही से आती है !
    खूबसूरत ग़ज़ल !

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  8. andhera aur prakash.. dono ka rashta ek:)
    behtareen!

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  9. Super like hai Vandu....Too good.... :)

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