न दर्द न गिला न चुभन कोई
घुट के रह गयी है घुटन कोई !
शिद्दत से मुस्कुराईं हैं नम आँखें
है जरूर राज़ इनमे दफ़न कोई
खुद को खुद में न तुम कैद रक्खो
जला दे न तुमको जलन कोई
बनते उधड़ते ख्यालों के कसीदे..
ज्यों मची हो जहन में रुदन कोई
खिड़कियों से तेरी आदतन गुफ्तगू
क्या सुनती है तुझको पवन कोई ?
अपने गम से ना तुम हार जाना
देखो, पड़ने न पाए शिकन कोई
देखो, पड़ने न पाए शिकन कोई
जिधर से आता है घर में अँधेरा
आती है वहीं से ही किरन कोई !
शिद्दत से मुस्कुराईं नम आँखें
ReplyDeleteहै जरूर राज़ इनमे दफ़न कोई ... वाह
खूबसूरत गजल
ReplyDeleteबहुत बढ़िया |
ReplyDeleteबधाई स्वीकारें ||
बहुत बढि़या प्रस्तुति।
ReplyDeleteब्ऴुत खुबसूरत गजल.........
ReplyDeletebehtareen gazal vandana ji
ReplyDeleteवंदना जी, बहुत ही बढ़िया गजल... आनंद आ गया... जय हो.
ReplyDeleteअँधेरे के डर से ना खिड़कियाँ बंद हो , रोशनी भी तो वही से आती है !
ReplyDeleteखूबसूरत ग़ज़ल !
andhera aur prakash.. dono ka rashta ek:)
ReplyDeletebehtareen!
Super like hai Vandu....Too good.... :)
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