Monday, May 14, 2012

त्रिवेणी



घर कि उदासियाँ मुझसे बतियाती रहती हैं 
सुबह शाम तुम्हारी याद दिलाती रहतीं हैं..

तुम बिन बहुत अकेली हूँ माँ जल्दी से वापस आ जाओ !








वंदना 

7 comments:

  1. वाह: दो पंक्तियों मे सारे जहाँ का प्यार....

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  2. बहुत सुंदर.......................

    अनु

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  3. माँ की याद .... सुंदर अभिव्यक्ति

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  4. Now, that was too cute.... :)
    Bahut hi badhiya triveni Vandu... :)

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  5. Bahut khoob ... Maa ki prateeksha to sab ki hai ... Lajawab triveni

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  6. triveni likhna bahut jatil kaam hai.......
    Gulzar sahib ke baad mujhe aapki triveni achi lagi.

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तुम्हे जिस सच का दावा है  वो झूठा सच भी आधा है  तुम ये मान क्यूँ नहीं लेती  जो अनगढ़ी सी तहरीरें हैं  कोरे मन पर महज़ लकीर...